बीखा बात अधम की कहन-सुनन की नाहि
जो जाने सो कहे नहीं जो कहे सो जाने नाहि ॥
एक लब्ज़-ए-मोहोब्बत का अदना यह फ़साना हैं ।
सिमटे तो दिल-व-आशिक़ फ़ैले तो ज़माना हैं॥
आख़ों मैं नमी सी हैं, चुप् चुप् से वो बैंठें हैं ।
नाज़ुक सी निग़ाहों मैं, नज़ुक सा फ़साना हैं ॥
ये इश्क़ नहिं आसान, इतना ही समझ लीजिये ।
एक आग़ का दरिया हैं, बस डूब ही जाना हैं॥
दिल संग़-ए-मलामत का हर चंद
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